
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी पर मुसलमानों का अधिकार! आखिर क्यों बदलना पड़ा सुप्रीम कोर्ट को 57 साल पुराना अपना ही आदेश?
journo sagir, November 11, 2024नई दिल्ली : मुख्य न्यायाधीश डी वाई चन्द्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 7 जजों की बेंच ने एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने का फैसला सुनाया। SC का यह फैसला खास इसलिए भी है कि 57 साल पहले 1967 में अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में दिए अपने ही फैसले को पलट दिया है जिसमें कहा गया था AMU अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे का दावा नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट का कहना है, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी भारत के संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे की हकदार है।
क्या है पूरा मामला
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसख्यंक दर्जे पर अपना फैसला सुनाया है। इस बेंच में CJI के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस JB पारदीवाला तथा जस्टिस मनोज मिश्रा AMU को अल्पसख्यंक दर्जा देने के पक्ष में रहे जबकि जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता व जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने इस मामले पर अपनी असहमति जताई। साल 2005 में AMU ने खुद को अल्पसंख्यक संस्थान मानते हुए मेडिकल के पोस्ट ग्रेजुएट कोर्सेज़ में 50 फीसदी सीटें मुस्लिम छात्रों के लिए आरक्षित कर दी थीं तब इस मामले के खिलाफ हिन्दू छात्र इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था। साल 2006 में हाईकोर्ट ने अपने फैसले में एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना था जिसके बाद AMU ने इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट अपील की थी और साल 2019 में यह मामला 7 जजों की संवैधानिक बेंच को भेजा गया।
अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि AMU का अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा बरकरार रहेगा। इस मामले में सबसे दिलचस्प बात यह रही कि सुप्रीम कोर्ट ने 57 साल पहले सुनाया गया अपना ही फैसला पलट दिया है जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 4:3 के बहुमत से कहा कि सन 2006 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले की वैधता तय करने के लिए एक नई पीठ गठित कर मामले के न्यायिक दस्तावेज मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखे जाने चाहिए।
AMU का इतिहास
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) की स्थापना सन 1875 में सर सैयद अहमद खां ने की थी। इसका आरंभ अलीगढ़ मुस्लिम कॉलेज के रूप में हुई थी। इस संस्थान को शुरू करने का उद्देश्य मुसलमानों का शैक्षिक उत्थान करना था फिर उसके बाद सन 1920 में इस कॉलेज को विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया तभी से इस संस्थान को 'अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी' के नाम से जाना जाने लगा। इसके अधिनियम में सन 1951 और सन 1965 में संशोधन किये गये तभी से यहां पर विरोध की शुरुआत हो गई। जब यह मामला उच्चतम न्यायालय में पहुंचा तो सन 1967 में सुप्रीम कोर्ट ने इसको सेंट्रल यूनिवर्सिटी माना। तब कोर्ट ने कहा था कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता। इसके मामले को लेकर बहुत प्रदर्शन किये गये तब सन 1981 में AMU को अल्पसख्यंक दर्जा देने वाला संशोधन किया गया. इसके बाद इस मामले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। सन 2006 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सन 1981 के अधिनियम को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का निर्णय?
शुक्रवार को चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने माना कि कोई संस्था अपना माइनॉरिटी स्टेटस केवल इसलिए नहीं खो देगी क्योंकि यह एक क़ानून द्वारा बनाया गया था। बहुमत ने माना कि न्यायालय को यह जांच करनी चाहिए कि यूनिवर्सिटी की स्थापना किसने की और इसके पीछे “इरादा” क्या था। यदि वह जांच अल्पसंख्यक समुदाय की ओर इंगित करती है तो संस्था संविधान के अनुच्छेद 30 के अनुसार अल्पसंख्यक दर्जे का दावा कर सकती है। इसका तथ्यात्मक निर्धारण करने के लिए संविधान पीठ ने मामले को नियमित पीठ को सौंप दिया है।